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विचित्र प्रबन्ध।

के कारण तुम्हारे इस रौद्र संगीत का ताल टूट न जाय! हे मृत्यु जय, हमारे सभी अच्छे और सब बुरे में आपकी ही जय हो!

हम लोगों के इस पागल-देवता का आविर्भाव क्षण क्षण भर पर नहीं हुआ करता। सृष्टि में इसका पागलपन भरा पड़ा है; घड़ी घड़ी भर पर हमें उसका परिचय प्राप्त होता है। प्रतिदिन ही जीवन को मृत्यु नवीन बनाता है, उत्तम को निकृष्ट उज्ज्वल बनाता है। तुच्छ को अभावनीय घटना महामूल्य बनाती है। हम जब परिचय पाते हैं तब रूप मेँ अपरूप का और बन्धन में मुक्ति को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं।

आज इस मेघ-मुक्त प्रकाश में उसी अपरूप की मूर्ति प्रकाशित हो उठी है। सामने का यह रास्ता, यह छप्पर के नीचे की मोदी की दूकान, वह खँडहर, यह सँकरी गली और ये वृक्ष आदि प्रतिदिन के परिचित होने के कारण बहुत ही तुच्छ जान पड़ते थे। इसी से उन्होंने भी आज तक मुझे बाँध रक्खा था। प्रतिदिन इन्हीं कुछ पदार्थों में ही हमारी आँखें नज़रबंद थीं। आज वह तुच्छता अकस्मात् चली गई है। आज देख रहा हूँ कि अब तक सदा के अपरिचितों को परिचित समझ कर देख रहा था। आज भी वे पदार्थ पहले के समान मेरे चारों ओर वर्तमान हैं परन्तु उन्होंने मुझे अपने में अटकाया नहीं है। हर एक ने मुझे रास्ता दे दिया है। मेरा पागल यही था। उस अपूर्व अपरिचित और अपरूप ने इस मोदी की दूकान को तुच्छ समझ कर छोड़ नहीं दिया। केवल जिस प्रकाश से वह देख पड़ता है वह प्रकाश मेरी आँखों में नहीं था। आज आश्चर्य यही है कि इस सामने के दृश्य, इन समीप के पदार्थों, ने आज बहुत दूर