पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२७१

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२६० विचित्र प्रबन्ध धानी से तुनता है उसी प्रकार नीचे मुंह करके नदी चुपचाप बैठी है और बड़े ध्यान से उन बातों पर विचार कर रही है। दीप्ति भी चुपचाप बैठी है । वायु ने उससे पूछा-क्यों जी, क्या सोच रही हो? दीप्ति नं कहा–बङ्गाली खियों की प्रतिभा से बङ्गाली लड़कों में इस प्रकार नई नई बातों की सृष्टि करने की शक्ति कब से उत्पन्न हुई, यही सोचती हूँ। मैंने कहा-ता मिट्टी से क्या सदा शिव ही बनाये जाते हैं ? गद्य और पद्य मैंने कहना शुरू किया-वंशी के शब्द में, पूर्णिमा की चांदनी में, - श्रीमती क्षिति मुझको इस प्रकार आनन्दोन्मत्त देख कर हंसने लगी। उन्होंने कहा [-भाई, यह क्या करते हो ? इस समय इसको बन्द करा । कविता छन्द में करने ही से भली लगती है । यदि तुम पाँच जन मिल कर गद्य में कविता का योग करो तो वह गद्य प्रति दिन के व्यवहार के अयोग्य हो जायगा। दृध में पानी मिलाने से किसी तरह काम चल जाता है, पर पानी में दृध मिलानं से काम नहीं चलता। वह दूध मिलाया हुआ पानी स्नान-पान आदि के काम में नहीं आ सकता। यदि कविता में थोड़ा-बहुत गद्य मिला दिया जाय तो उससे हम लोगों के समान गद्य-प्रेमियों को कविता समझने में सुभीता हो सकता है, परन्तु गद्य में कविता का मिलाया जाना बड़ा ही भद्दा है। ---बस, मन की मन ही में रह गई । शरद ऋतु कं प्रातःकाल