पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२७४

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पञ्चभूत। २६३ सहसा उस पर कोई आक्रमण नहीं कर सकता । अपने लिए वह, साधारण की भाषा से भिन्न, दुर्गम परन्तु सुन्दर सीमा निश्चित करती है। यदि अपने हृदय के भाव को मैं उस सीमा के भीतर पहुँचा सकता तो क्षिति की तो बात ही क्या है, किसी तिति-पति में भी यह साहस न होता कि वह पाकर मेरा उपहास कर जाय । व्योम गुड़गुड़ी पी रहे थे। उसका नैचा हटा कर आँखें बन्द किये हुग ही वे कहनं लगमैं एकता-वादी हूँ। एक गद्य के द्वारा ही मनुष्यों के सब काम सिद्ध होजात, परन्तु न मालूम कहाँ से यह पद्य आकर बीच में कूद पड़ा और इसने मनुष्यों के मन में अन्तर डाल दिया। इसी द्वारा मनुष्य-समाज में कवि नामक एक नई जाति की सृष्टि हुई है। किसी सम्प्रदाय के हाथ में जब सर्वसाधारण का धन चला जाता है तब वह सम्प्रदाय, स्वार्थ-वश होकर, बड़े जोर से इस बात का प्रयत्न करता है कि उस धन पर किमी दुसरं का अधिकार न हो। इसी प्रकार कवियों ने भी भाव कं चागं और एक कठोर रुकावट उत्पन्न करने के लिए कविता नाम कं एक कृत्रिम पदार्थ की सृष्टि कर ली है। छन्दां की रचना-विशेष पर जन-साधारण नितान्त मुग्ध हुआ है। उससे सर्वसाधारण को बड़ा आनन्द होता है। मनुष्य का स्वभाव इतना विकृत हो गया है कि वह कविता सुनते ही आनन्द में विभोर होजाता है । यदि उस समय आनन्द-प्रकाशक ताली न पीटी जाय तो उसका चैतन्य होना भी कठिन हो जाय । कविता में सरल स्वाभाविक भाषा को छोड़ कर रङ्गीन भाषा का महत्व दिया जाता है। भाव के लिए यह बड़े अपमान की बात है । मालूम पड़ता है, यह पद्य की सृष्टि