पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२८२

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पञ्चभूत । कोई कवि इस अद्भुत भाव को अनन्त-विषयक अभिलाषा के नाम से पुकारते हैं । मैं भी कभी कभी इस भाव का अनुभव करता हूँ। इसका प्रयोग भाषा में भी करने की इच्छा है। कंवल मङ्गीत ही के विषय में यह बात नहीं है किन्तु सन्ध्या कं आकाश में अस्ता- चल पर जानेवाले सूर्य की प्रभा ने भी मेरे हृदय में उस विराट के हृदय-स्पन्दन का कई बार सञ्चार कर दिया है । जो एक बृहत संगीत मदा ध्वनित होता रहता है, उसके माथ मेरे प्रति दिन के सुख-दुःखों का कोई सम्बन्ध नहीं । वह विश्वेश्वर के मन्दिर की प्रदक्षिणा कर रहे समस्त संसार का माम-गान है। कंबल संगीत अथवा सूर्यास्त के बारे में ही यह बात नहीं कही जा मकती। बल्कि कोई भी प्रेम, जिसके कारण हम लोग अपना सम्पूर्ण अस्तित्व भूल जाते हैं, हमारं सांसारिक क्षुद्र बन्धनों को तोड़ कर उम अनन्त की ओर खींचता है। वह एक बड़ी उपासना का स्वरूप है। उसके द्वारा दंश-काल-रूपी पत्थर ताड़े जाते हैं और एक निर्मल प्रवाह निकलता है जो उस अनन्त की आर हमें लें जाता है। प्रवल कम्पन संमार के कम्पन से हम लोगों को मिला देता है। जिस प्रकार एक बड़ी सेना एक भाव से प्रेरित होकर एक-प्राणा हो जाती है, उसी तरह संसार का कम्पन जिस समय हम लोगों के हृदय में संचारित होता है उस समय हम लोग भी समस्त संसार के साथ एक हो जाते हैं। सारे संमार के कम्पित परमा- णुओं के साथ मिलकर बड़े वेग से हम लोग अनन्त की ओर अग्रसर होते हैं।