पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२८४

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पञ्चभूत। २७३ भीकों ने "ज्योतिष्क-मण्डली का सङ्गीत' नाम के एक सङ्गीत का उल्लेख किया है। महाकवि शेक्सपियर ने भी इसका जिक्र किया है। इसका कारण पहले कहा जा चुका है। एक गति के साथ दूसरी गति का स्वाभाविक सम्बन्ध होना ही इसका कारण है। अनन्त आकाश में चन्द्र, सूर्य, ग्रह, तारा आदि आपस में मिल कर नृत्य कर रहे हैं। परन्तु इनका विश्वव्यापी महासंगीत कानों से सुना नहीं जाता, केवल आँखों से देखा जाता है । छन्द संगीत का एक रूप है। अतएव छन्द और ध्वनि दोनों मिल कर कविता का एसी शक्ति देते हैं, जिससे भाव में कम्पन उत्पन्न होता है, हृदय चेतन हो जाता है, और बाहरी भाषा हृदय की एक वस्तु हो जाती है। सुन्दरता कृत्रिम नहीं है, कृत्रिम तो भाषा है। भाषा मनुष्य की है, सौन्दर्य है सारे जगत् का और जगत के विधाता का। प्रसन्न होकर श्रीमती नदी ने कहा-नाटक में हमारे हृदय को विचलित कर देने लायक अनेक सामप्रियाँ वर्तमान रहती हैं। गाना, प्रकाश, दृश्य-पट और अच्छी सजावट ये सब मिलकर चारों ओर से हमारे हृदय पर अपना प्रभाव डालते हैं। नाटक मैं एक प्रकार के मूर्तिमान भाव का ताँता बँध जाता है और वह अनेक कार्यों के रूप में प्रवाहित होता है। उस समय निरुपाय होकर हम लोगों का मन उसको प्रात्म-समर्पण कर देता है और बड़े वेग से उसमें मिल जाता है । रङ्गभूमि पर देखा जाता है कि अनेक प्रकार की कलाओं के बीच मापस में परस्पर सहयोगिता वर्तमान है। रज-मश्च पर सङ्गीत, साहित्य, चित्र-विद्या, नाट्यकला प्रादि १८