पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२८६

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पञ्चभूत। विषय में केवल इतना ही कहा जा सकता था कि तुम्हारा लिया पसन्द नहीं आया । यह अवश्य ही मेरा दुर्भाग्य है, और शायद तुम्हारा भी। दीप्ति ने गम्भीरता से उत्तर दिया-'हो सकता है ।" इतना कह कर वह एक पुस्तक लेकर पढ़ने लगी। इस के बाद नदी ने फिर दुबारा मुझसे अपनी कविता पढ़ने के लिए अनुरोध किया। व्योम ने खिड़की के बाहर की ओर बहुत दूर आकाश में रहने- वाले किसी काल्पनिक पुरुष को सम्बोधन करके कहा----यदि तात्पर्य की बात कहो तो हमनं तुम्हारी कविता का एक तात्पर्य समझा है। क्षिति ने कहा---पहलं वह बात ता मालूम हो जाय । कविता तो अभी पढ़ा ही नहीं गई और आप लोग लगे विचार करने । अभी तक मैं कवि महाशय के भय सं चुप बैठी थी, पर अन्त में मुझे भी बोलना ही पड़ा । व्योम ने कहा -- सजीवनी विद्या सीखने के लिए देवताओं ने देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच को शुक्राचार्य के समीप भेजा था। कच ने हज़ार वर्ष तक शुक्राचार्य की कन्या देवयानी को नृत्य-गीत आदि द्वारा प्रसन्न किया, और उसीकी कृपा से कच का सजीवनी विद्या प्राप्त हुई। कच के अपने घर लौटनं का जब समय आया उस समय वह देवयानी के पास बिदा होने के लिए गया। उस समय देवयानी ने उस पर अपना प्रेम प्रकट किया और उससे मदा वहीं रहने का अनुरोध किया। कच का भी देवयानी पर प्रेम था, परन्तु कच ने उसका मना करना न माना । वह देवलोक को चला