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विचित्र प्रबन्ध।

बँधा हुआ हूँ, परन्तु आज देखता हूँ कि मैं सदा से एक महान् अपूर्व की गोद में खेल रहा हूँ। मैंने सोचा था कि आफ़िस के बड़े साहब की तरह एक बहुत बड़े हिसाबी के हाथ में पड़कर, सामने जाकर, संसार में नित्य हिसाब कर रहा हूँ––किन्तु आज देखा कि उस बड़े साहब से भी बड़े के यहाँ हिसाब का आदर नहीं है। उस पागल के उदार अट्टहास्य को सुनकर हृदय में धैर्य हुआ। जल-स्थल-आकाश तथा सात लोकों में गूँजनेवाले उसके अट्टहास्य को सुनकर जान बची। मेरा बहीखाता ज्यों का त्यों पड़ा रह गया। मैंने अपने ज़रूरी कामों का बोझ इसी अनोखे के चरणों के पास फेंक दिया। उसके ताण्डव नृत्य की चोट से वह चूर चूर होकर धूल में मिल कर उड़ जाय!


रङ्गमञ्च

भरत के नाट्यशास्त्र में नाट्यमञ्च का वर्णन देखा जाता है। किन्तु उसमें दृश्यपट (पर्दे) का कोई उल्लेख नहीं पाया जाता। उसका उल्लेख न होने से, मेरी समझ में, कोई हानि भी नहीं।

जहाँ कला-विद्या का एकाधिपत्य है वहीं उसका पूर्ण गौरव भी है। सौत के साथ रहने से स्त्री को छोटा बनना ही पड़ेगा:–– ख़ासकर अगर सौत ज़बरदस्त हो। यदि रामायण को सुर से पढ़ें तो बालकाण्ड से लेकर उत्तरकाण्ड तक सुर को एक ही ढंग में रहना पड़ेगा। राग-रागिनी के हिसाब से उस बेचारे सुर की कभी उन्नति नहीं हो सकती। जो काव्य ऊँची श्रेणी के हैँ