पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२९०

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के हृदय पञ्चभूत। २७६ न किसी इतिहास-वेत्ता विद्वान् ने ही जन्म लिया था । उस दिन संसार में यह घोषणा प्रचारित हुई कि यह संसार मैशीन नहीं है, --इममें प्रम नाम का एक अनिर्वचनीय पदार्थ है, जिसकी इच्छा- शक्ति-रूपिणी कीचड़ से पंकज (कमल) उत्पन्न होते हैं और उसी पङ्कज-वन में भक्तगगा सौन्दर्य स्वरूपिणी लक्ष्मी का तथा भाव- स्वरूपिणी सरस्वती का दर्शन करते हैं। क्षिति ने कहा-यह सुन कर मैं प्रसन्न हुई कि हम में से हर एक इस प्रकार की काव्य की घटना हो रही है तथापि सरल स्वभाव दह प्रति चञ्चल आत्मा का व्यवहार सन्तोष. जनक नहीं है, यह बात माननी ही होगी। मेरी धारणा है कि मेरा जीव ऐसी चपलता नहीं दिग्बावेगा और कम से कम कुछ दिनों तक अभी और मेरे शरीर में रहेगा। आप लोग भी मुझे ऐसा ही आशीर्वाद दें। वायु नं कहा--भाई व्याम, तुम्हार मुंह से शास्त्र-विरुद्ध बातें तो मैंने कभी नहीं सुनी थी। आज तुम क्या ईसाइयां की ऐसी बातें कर रहे हो ? ये बाने तो तुम्हारी पहले की बातों से नहीं मिलती कि जीवात्मा स्वर्ग से आकर देह से मिलता है और उसका परि- णाम मुख-दुःख आदि के रूप में होता है। व्याम ने कहा-~-इन सब बातों के माथ किसी सिद्धान्त के मिलान करने का प्रयत्न मत करना। मैं अपनी पहले की बातों से किसी दूसरे मत का विरोध करना नहीं चाहता । जीवन-यात्रा के व्यवसाय में प्रत्येक जाति अपने अपने राज्य में प्रचलित सिकों से मूलधन एकत्रित करती है । सिद्धान्त यही रहता है कि इस प्रकार