पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८१
पञ्चभूत।

नष्ट-भ्रष्ट करके चला जाता है। पृथिवी की प्रत्येक तह में इस निठुर बिदाई का विलाप-गान लिखा हुआ है:―

क्षिति की बातों के बीच ही में दीप्ति ने कहा―तुम लोग इस तरह अगर तात्पर्य निकालोगे तो तात्पयों की सीमा न रहेगी। लकड़ी को जला कर अग्नि का विदा होना, फूलों को नष्ट करके फलों का निकलना, बीज को फोड़ करके अंकुर का उत्पन्न होना, इस प्रकार के अनेक तात्पर्य निकाले जा सकते हैं।

व्योम ने गम्भीरता के साथ कहा―ठीक बात है; ये सब तात्पर्य नहीं हैं, इनकी उदाहरण कह सकते हैं। इनका सार केवल इतना ही है कि इस संसार में दोनों पैरों की सहायता बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते। बायें पैर के सहारे सारा शरीर खड़ा रहता है तो दाहना पैर आगे बढ़ाया जाता है, और दाहने पैर के सहारे पर बायाँ पैर आगे उठाया जाता है। ये दोनों पैर क्रमश:स्वयं बँधते हैं और तत्काल उस बन्धन को भी तोड़ देते हैं। इसी तरह हम लोगों को भी बँधना पड़ता और तत्क्षण बन्धन तोड़ना पड़ता है। हम लोग प्रेम करते हैं और पुन: उस प्रम को छिन्न भिन्न कर देते हैं। संसार में यही बड़ा भारी दुःख है, और हम लोगों को इसी बड़े दुःख में से आगे बढ़ना पड़ता है। समाज के सम्बन्ध में भी यही बातें कही जा सकती हैं। प्राचीन नियम जब समयानुसार प्राचीन हो जाता है और प्रथा के रूप में परिणत होकर वह जब हम लोगों को जकड़ लेता है उस ममय सामाजिक विप्लव उठ खड़ा होता है और उस विप्लव के कारण वह प्रथा छिन्न भिन्न हो जाती है। एक पैर आगे रखते ही पीछे वाला पैर उठा लेना