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विचित्र प्रबन्ध।

क्षिति की बात समाप्त होने पर व्योम फिर कहने लगा―विज्ञान के उद्देश्य को जानना और दर्शन के उद्देश्य को समझना कठिन है। अन्यान्य बातें जानने तथा समझने की अपेक्षा विज्ञान का जानना और दर्शन को समझना कठिन है। इनको जानने और समझने के लिए कितने ही स्कूल, पुस्तकें, तथा और भी अनेक उपाय किये जाते हैं। साहित्य का उद्देश्य है आनन्द देना। पर उस आनन्द को ग्रहण करना भी सहज नहीं है। उसके लिए अनेक प्रकार की शिक्षा तथा सहायता की अपेक्षा है। इसी कारण मैं कहना था कि मन इतनी दूर आगे चला जाता है कि उसको पकड़ने के लिए सीढ़ी लगानी पड़ती है। यदि कोई घमण्ड करके कहे कि शिक्षा के बिना जो न जाना जाय वह विज्ञान नहीं है, जो बिना प्रयत्न के न समझा जाय वह दर्शन नहीं है और जो बिना साधन के आनन्द नहीं देता वह साहित्य नहीं है, तो उसको कुछ कहावतों और रामलीला, नाटक आदि के द्वारा ही सन्तोष करना चाहिए। उसको आगे बढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं।

वायु ने कहा―मनुष्य के संसर्ग से सभी वस्तुएँ प्रायः कठिन हो जाती हैं। असभ्य मनुष्य किसी तरह चिल्ला कर―सिर हिलाकर प्रसन्न हो लेता है परन्तु सभ्य मनुष्यों के भाग्य में वह बात नहीं लिखी है। हम लोगों को बड़े परिश्रम से सङ्गीत सीखना पड़ता है। यह हम लोगों के ग्रह-दोष की बात है कि जब तक खूब अभ्यास के द्वारा हम लोग संगीत को नहीं सीख लेतें तब तक आनन्द नहीं आता। सङ्गीत सीखने के लिए जितना परिश्रम करना पड़ता है उतना ही अच्छा गाने के लिए भी। इसका