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पञ्चभूत।

फल यह होता है कि एक समय जिस वस्तु पर सर्व-साधारण का अधिकार था, किसी समय वही वस्तु केवल साधक-दल के अधिकार में आ जाती है। चिल्लाना सबको आता है। उसेसे असभ्य भी पूरा पूरा आनन्द उठाते हैं। पर सब लोग न तो गाना जानते हैं और न उससे सुख ही पा सकते हैं। अतः समाज ज्यों ज्यों अपनी उन्नति करता जाता है त्यों त्यों उसमें दो दलों की सृष्टि होती है―अधिकारी और अनधिकारी, रसिक और अरसिक।

क्षिति ने कहा―बेचारा मनुष्य इस प्रकार का बनाया ही गया है कि वह चाहे सीधे से सीधे उपाय का भी आश्रय ग्रहण करे परन्तु वह कठिन ही हो जाता है। वह कामों को सरलतापूर्वक करने के लिए कल बनाता है, परन्तु वह कल ही एक कठिन काम हो जाता है। उससे काम लेने में मनुष्यों को कठिनता का सामना करना पड़ता हैं। मनुष्य प्राकृत ज्ञान को नियमित करने के लिए विज्ञान का आविष्कार करता है, पर उस विज्ञान का जानना ही एक कठिन काम हो जाता है। सुविचार करने के लिए एक सहज मार्ग बनाने की इच्छा से मनुष्य क़ानून बनाता है, परन्तु उस क़ानून को यथार्थ समझने के लिए दीर्घजीवी को भी अपने जीवन का आर्ध से अधिक भाग लगा देना पड़ता है। लेन-देन में सुभीते के लिए मनुष्यों ने सिक्का बनाया, परन्तु अन्त में सिक्के की समस्या इतनी कठिन हुई कि वह हल न हो सकी। मनुष्य अपने सब कामो को सहज करने का प्रयत्न तो करता है परन्तु उसके सभी काम कठिन हो जाते हैं। यहाँ तक कि आमोद-प्रमोद, खाना-पीना आदि उसके सभी काम कठिन हो जाते हैं।

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