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विचित्र प्रबन्ध।

नदी ने कहा―इसी सिद्धान्त के अनुसार कविता भी कठिन हो गई है। इसी कारण आज-कल मनुष्यों में दो दल पाये जाते हैं--धनी और निर्धन, गुणी और निर्गुण। धनियों की संख्या थोड़ी है और निर्धन बहुत हैं; गुणी थोड़े हैं पर निर्गुणों का तो शुमार करना भी कठिन है। इस समय कविता पर सर्व-साधारमा का अधिकार नहीं है, उस पर तो इने-गिने लोगों का ही अधिकार है। ये सब बातें मैंने समझ लीं पर बात तो यह है कि इस समय जिस कविता के बारे में हम लोग बातचीत कर रहे हैं उस कविता में तो कहीं भी कठिनता नहीं। उसमें ऐसा कोई भी भाग नहीं जिसे हमारे समान मनुष्य न समझ ले। वह बहुत ही सरल है, अतएव वह कविता अगर हमें अच्छी न लगे तो उसमें हमारी समझ का कुछ भी दोष नहीं।

क्षिति और वायु न नदी के कहने पर और कुछ भी कहना नहीं चाहा । परन्तु व्योम बड़ी प्रसन्नता से कहने लगा-यह कोई बात नहीं कि जा सरल है वह सहज भी हो। कभी कभी वहीं बात अत्यन्त कठिन हो जाती है। क्योंकि काव्य का वह सरल अंश बाहरी उपायां सं अपना अर्थ प्रकट करने के लिए स्वयं चेष्टा नहीं करता, वह चुपचाप पड़ा रहता है। उसको विना समझ ही यदि पाठक आगे चले जाते हैं तो भी वह पाठकों को अपना अर्थ समझा देने के लिए बुलाता नहीं। प्राजलता का यही प्रधान गुण है कि वह अनायास, बिना परिश्रम के ही, अपना सम्बन्ध मन के साथ स्थापित कर लेती है। उसके और मन के बीच में सम्बन्ध स्थापित कराने के लिए किसी दृमरे की आवश्य-