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पञ्चभूत।

असाधारणता हम पर प्रकट नहीं होती। भाव की सुन्दरता पर कृत्रिम अलङ्कार न हों तो हम लोग उसकी प्रतिष्ठा नहीं कर सकते।

वायु ने कहा―संयम भद्रता का एक प्रधान लक्षण है। सज्जन मनुष्य अधिक अलङ्कार प्रादि की दिखाऊ अप्रधानता से अपनी उद्दण्डता नहीं दिखाते, किन्तु विनय और संयम के द्वारा वे अपनी मर्यादा स्थिर रखते हैं। कभी कभी ऐसा भी देखा जाता है कि साधारण मनुष्य नियमित और सुसज्जित सज्जनता की अपेक्षा आडम्बर और बाहरी चमक-दमक को अधिक महत्व की दृष्टि से दखते हैं। वे इसको अधिक आकर्षक समझते है। यह सज्जनता का दोष नहीं; यह तो उन साधारण मनुष्यों का अभाग्य है। साहिय में और आचार-व्यवहार में संयम उन्नति का लक्षण है। चमक-दमक के द्वारा लोगों की दृष्टि को अपनी ओर आकर्षित करना तो बर्बरता है।

मैंने कहा―कभी कभी नई नई लहरों के न उठने से परिपूर्णता भी लोगों की दृष्टि से छिपकर चली जाती है और कभी कभी बहुत से लोग इसलिए विचलित हो जाते हैं कि परिपूर्णता का तो अभाव है, पर लहरें वहाँ उठा करती हैं। परन्तु इस कारण यह समझ लेना उचित नहीं कि परिपूर्णता में प्राञ्जलता रहती ही है और चमक-दमक में उथलापन रहता है।

नदी का लक्ष्य करके मैंने कहा-उच्च श्रेणी का सरल साहित्य भी कभी कभी इसी कारण कठिन हो जाता है। क्योंकि मन तो उसको समझ लेता है पर वह अपने को स्वयं समझा नहीं सकता।

दीप्ति ने कहा―मैं प्रणाम करती हूँ। आज आप लोगों ने