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पञ्चभूत

पाती विधाता ने बिना कौतुक के पुरुष को हँसने की शक्ति नहीं दी है। परन्तु स्त्रियाँ किस कारण से हँसती हैं वह―‘देवो न जानाति कुत्तो मनुष्य:'―परमेश्वर भी नहीं जानता, मनुष्य कहाँ से जानेगा? चकमक पत्थर में प्रत्यक्ष प्रकाश नहीं होता परन्तु संघर्ष से वह बड़े गर्जन के साथ अपना प्रकाश चारों ओर फैला देता है और मानिक का टुकड़ा अपने आप प्रकाशित होता है। वह प्रकाशित होने के लिए किसी की अपेक्षा नहीं रखता। स्त्रियाँ तनिक सी बात पर रोना भी जानती हैं और अकारण हँसना भी। बिना कारण के कार्य उत्पन्न नहीं होता, यह कठोर नियम केवल पुरुषों के लिए है।

वायु ने अपना पात्र ख़ाली कर के और चाय माँगी और फिर कहने लगा―केवल स्त्रियाँ ही नहीं हँसती हैं। सबसे पहले तो हमको इस हास्य रस के विषय में ही कुछ बातें कहनी हैं। यह बात तो हमको मालूम है कि मनुष्य दुःख में रोता और सुख में हँसता है। परन्तु कौतुक से भी मनुष्य हँसता है, यह बात समझ में नहीं पाई। कौतुक से तो कोई सुख नहीं होता। यदि कोई मोटा आदमी कुरसी के टूट जाने से ज़मीन पर गिर जाय तो अवश्य ही उससे हम लोगों को कोई सुख नहीं होता, परन्तु उससे हँसी आती है। यह बात सत्य और परीक्षित है। विचार की दृष्टि से देखने पर यह बात बहुत ही विचित्र मालुम पड़ती है।

क्षिति ने कहा―भाई रहने दो, संसार में बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिन पर बिना विचार किये ही आश्चर्य होता है। पहले उन आश्चर्य-दायक बातों को समाप्त कर लीजिए, तब और किसी ओर ध्यान दीजिएगा। एक पागल था। वह अपने घर के आँगन को