पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९९
पञ्चभूत।

भी हो सकता है। प्रतिदिन ठीक समय पर हम लोग बिना किसी तरह के परिश्रम के बनी-बनाई रसोई खाते हैं परन्तु उससे हम लोगों को कुछ प्रसन्नता नहीं होती। यदि किसी दिन अधिक तैयारी हुई तो उस दिन भोजन का ठीक समय टल जाता है, अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं, शायद अखाद्य भी खाना पड़ता है; परन्तु वह है हम लोगों के लिए प्रसन्नता। जिस कष्ट और अशान्ति को हम लोग अपनी इच्छा से उत्पन्न करते हैं वह कष्ट भी हम लोगों की चेतन-शक्ति को उत्तेजित करता है। कौतुक भी उसी प्रकार का सुख-जनक एक दुःख है। कृष्णा के बारे में हम लोगों की जो धारणा है उस धारणा में, उनका हुक्का हाथ में ले कर राधिका के घर में आना सुनने से, धक्का लगता है। उस आघात से भी हमलोगों को कुछ कष्ट मालूम पड़ता है। परन्तु वह कष्ट बहुत ही सामान्य और नियमित होता है। अतएव वह जितना दुःख देता उसकी अपेक्षा हम लोगों की चेतना-शक्ति को उत्तेजित करके सुखी भी करता है। उस कष्ट की भी सीमा है। यदि वह सीमा से थोड़ा भी इधर उधर हुआ तो वह कौतुक दुःख के रूप में परिणत हो जाता है। यदि कहीं भक्ति का यथार्थ कीर्तन होता हो, और वहाँ कोई रसिकता के उन्माद से प्रस्त बालक वही गीत गावे जिसमें श्रीकृष्ण के हुक्क़ा हाथ में लिये राधिका के घर में जाने का वर्णन है तो उस समय श्रोताओं को कौतुक नहीं होगा किन्तु क्रोध उत्पन्न होगा। क्योंकि इसका आघात प्रबल होगा। उस क्रोध के कारण हाथ की मुट्ठी बँध जायगी और वह मुट्ठी उस रसिक की पीठ की पूजा करने के लिए तत्पर हो जायगी। अतएव मैं तो