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पञ्चभूत।

मैंने कहा―सभी प्रकार के अनुभव-यदि उनसे किसी बड़े भारी दुःख और स्वार्थ-हानि को आशङ्का न हो तो―सुख के ज़रिए हैं। अधिक क्या, भय से भी लोग सुखी होते हैं यदि उस भय में कोई सच्चा भय का कारण न हो। लड़के बड़े चाव से भूमित की कहानी सुनते हैं। क्योंकि हत्कम्प की उत्तेजना से हम लोगों का चित्त चञ्चल हो जाता है, और उस चित्त की चञ्चलता से भी आनन्द होता है। रामायण में सीता के वियोग से राम को दुःखी देखकर हम लेग भी दुःखी होते हैं; ओथलो की व्यर्थ निन्दा हम लोगों से मही नहीं जाती; कन्या की कृतघ्रता से दु:ग्विन लियर के कष्ट हम लोगों को भी पीड़ित करते हैं। यदि काव्यों के इन वर्णनों से हम लोग दुःखित न होते, यदि हम लोगों को इनसे मर्म-व्यथा न होती तो उन काव्यों का आदर हम लोग कभी पूरा पूरा न कर सकते। हम लोग दु:श्व के काव्यों का जितना आदर करते है उतना आदर सुख के काव्यों का नहीं, क्योंकि दुःख का अनुभव करने से हम लोगों का चित्त अधिक उत्तजित हो उठता है। कौतुक से मन में एक प्रकार का धक्का लगता है जिससे हम लोगों की अनुभव-शक्ति तीक्ष्ण हो जाती है। बहुत से रसिक एसे भी हैं जो एक दो थप्पड़ मारने को भी हँसी ही समझत हैं। कुछ लेग तो गाली का भी हंसने का कारण समझ कर उनका व्यवहार करते हैं। अतएव व्याह में कान मलना और इसी तरह क और भी पीड़ा पहुँचानेवाले उपायों को बङ्गाल की स्त्रियाँ हँसी ही समझती हैं। एकाएक आतिशबाजी का बमगोला चलाना इस देश में उत्सव का अङ्ग समझा जाता है और कानों को बहरे