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विचित्र प्रबन्ध!

करनेवाले घड़ियाल-घण्टे आदि को बजा कर, धुएँ के द्वारा मधु-मक्खियां की तरह, घबराहट में डाल कर भक्ति-रस प्रवाहित करने का प्रयत्न किया जाता है।

क्षिति ने कहा―भाइयो, अब तो आप लोग रहने दें। एक प्रकार से बात भी समाप्त हो गई। जितने पीड़न से सुख होता है उसकी सीमा को आप लोग नाँघ गये हैं। अब तो आप लोग दुःख को ही बढ़ाते हैं। आप लोगों की बातों से दुःख के बढ़ने में सहायता मिलती है। हम लोग इस बात को अच्छी तरह जानते है कि कमेडी का हँसना और ट्रेजेडी का रोना दोनों ही दुःख की यथायोग्य मात्रा पर अवलम्बित हैं,―

व्योम ने कहा―बर्फ पर जब पहले सूर्य की किरणे पड़ती है तब उसमें झिलमिलाहट पैदा होती है, फिर जब किरणों में ताप बढ़ जाता है तब बर्फ़ गलने लगती है। तुम कुछ प्रहसन और ट्रेजेडी के नाम लो, उनसे हम अभी प्रमाणित कर देत हैं,―

इसी समय दीप्ति और नदी दानों हँसती हुई वहाँ आकर उपस्थित हुई। दीप्ति ने कहा―क्यों, आप लोग किस बात को प्रमाणित करने का प्रयत्न कर रहे हैं?

क्षिति ने कहा―हम लोग इसी बात को प्रमाणित करते हैं कि तुम दोनों अभी तक बिना कारण वहाँ खड़ी खड़ी हँस रही थी।

यह सुन कर दीप्ति नदी के मुँह की ओर देखने लगी। नदी ने भी उसकी ओर देखा, और दानों खूब हँसने लगी।

व्योम ने कहा―हमलोग प्रमाणित करना चाहते थे कि