पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३१४

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पञ्चभूत। 'कमेडी' में दूसरों के थोड़े दुःख को देख कर हम लोग हँसते हैं और ट्रेजडी में दूसरे के अधिक दुःखों को देखकर रात हैं। दीप्ति और नदी की सम्मिलित मधुर हँसी से वह घर गूंज उठा। दोनों अधिक हँसने के लिए परम्पर एक दूसरे का दोषी बनाने लगी । दानों सखियाँ हँसते हँसते वहाँ से चली गई। पुरुष-सभ्य इस अकारण-हँसी को दख मुसकुरा कर चुप हो रहं । वायु ने कहा -व्याम, इस समय बहुत दिन चढ़ पाया है, यदि तुम अपने इस पंचरङ्ग नागपाश को खालकर रख दो ता तुम्हारे स्वास्थ्य हानि होने की कोई सम्भावना नहीं। क्षिति नं व्योम की लाठी उठा ली और उसं बड़े ध्यान सं दखने लगी। इसके बाद उसने कहा-व्याम, तुम्हारी यह गदा कमेडी का विषय है या ट्रेजेडी का सामान ? कौतुक-हास्य की मात्रा उस दिन की डायरी में मैंने कौतुक-हास्य के विषय में अपना मत लिखा था। उसको पढ़कर श्रीमती दीप्ति ने मुझको लिख भेजा है-"एक दिन सबरे नदी और हम दोनों मिलकर हनती धी । धन्य है वह प्रातःकाल और हम दोनों सत्रियों का हँसना ! सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक कितनी ही स्त्रियां न इस प्रकार की चपलता दिखाई है और इतिहास में भी उसका भला-बुरा फल चिरस्थायी होगया है। हो सकता है कि स्त्रियां बिना कारण ही हंसती हों परन्तु उनका हंसना मन्दाक्रान्ता, उपन्द्रवज्रा, शार्दूल- विक्रीड़ित, त्रिादी, चतुष्पदी प्रादि छन्दों का कारण है, ऐसा लोगों से सुना गया है । स्त्रियों का स्वभाव चञ्चल है इस कारण वे बिना