पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३१५

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विचित्र प्रवन्ध । कारण के हो हँसती हैं, और दूर से इस बात को देखकर बहुत स पुरुप व्यर्थ रोते हैं, बहुत से पुरुष तुक मिलाते हैं और कितने ही ता गन्ने में रम्सी बाँध कर मर जाते हैं। अब की बार एक और नई बात दखली । वह यह कि स्त्रियां की हँसी देखकर कितने ही निपुणा दार्शनिकों के मस्तिष्क में नये नये दर्शन-सिद्धान्त उत्पन्न हात । परन्तु सच्ची बात तो यह है कि तत्व-निर्णय करनेवालों को अपेक्षा पहले के तीन मनुष्य हमारी सम्मति से अच्छे हैं।" उस दिन हास्य के विषय में हम लोगों ने जो सिद्धान्त निश्चित किया था उसको श्रीमती दीप्ति ने अपनी पूर्वोक्त बातों से अप्रमाणित सिद्ध किया है। इस विपय में हमारी पहली बात यह है कि उस दिन के तत्त्व- विचार में हम लोगों ने प्रबल युक्तियों का प्रयोग नहीं किया, इस कारण दाग्नि का हम लोगों पर आक्षेप करना प्रयान्य है। क्योंकि स्त्रियां के हसने से इस संसार में जितने अनर्थ होते हैं उन अनाँ में बुद्धिमानों का बुद्धि-नाश भी एक अनर्थ है। जिम समय हम लोग इस दार्शनिक तत्त्व का विचार करते थे उस समय हमारी अवस्था हो ऐसी होगई थी। यदि उस समय हम कविता लिखना चाहत ना लिख भी सकते, और गले में फाँसी भी डाल सकत । दूसरी बात यह है कि उनके हँसने में से हम लोग अनुस- न्धान के द्वारा तत्व निश्चित करेंगे, इस बात की कल्पना उन लोगों ने जिस प्रकार नहीं की थी उसी प्रकार हम लोगों ने भी ता यह कल्पना नहीं की थी कि हमारं तत्त्र में से वे युक्तियां हूँढ़ निकालंगी।