पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३१८

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पञ्चभूत। कथोपकथन-सभा का एक प्रधान नियम यह है कि बिना ही परिश्रम के बड़े वेग से आगं बढ़ो अर्थात् मानसिक दौड़ लगाओ। यदि हम लोगों के पैर ममतल न हान, किन्तु सुई की नोक के समान तीक्ष्ण होते ता अवश्य ही हम लोगों को बहुत दूर तक तह में धुम जाने का सुभीता होता परन्तु हम लोग आगं एक पर भी नहीं बढ़ सकते । कथोपकथन-मभा में यदि हम लोग किसी एक बात को लेकर उसके अन्तिम सिद्धान्त तक पहुँचने का प्रयत्न करें तो कंवल उसी स्थान पर अटक जाना पड़ेगा; वहां से एक पैर भी आगे बढ़ने का उपाय न रहेगा। कभी कभी सा होता है कि मनुष्य चला जा रहा है, सहसा वह कीचड़ में गिर गया; वह अब वहीं फँमा है, उम्मका आगं एक पैर बढ़ना भी कठिन है। बेचार के लिए चलना गन्ते पड़ जाता है। ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनमें, विचार करने पर. बहुत दूर तक घुसना पड़ता है। बात- चीत के समय उन अनिश्चित और सन्दिग्ध बातों का विचार करना अावश्यक नहीं है। यह सब भूमि सन्ध्या-भ्रमण करनेवालों के लिए उपयोगी नहीं है, किन्तु जा किसान हैं और कृपि के द्वारा अपना जीवन-निर्वाह करना चाहते हैं उनके योग्य है। अस्तु, उस दिन प्रधानतया यही विचार हो रहा था कि जिस प्रकार मनुष्य दुःग्य से रोता है उसी प्रकार वह सुग्त्र से हँसता है। परन्तु इसी विचार में कौतुक की हँसी की बात न जाने कहाँ से बीच में उठ बड़ो हुई । कौतुक नाम की वस्तु रहस्यमय है। पशु भी सुख-दुःख का अनुभव करते हैं परन्तु उनमें कौतुक का अनुभव करने की शक्ति नहीं है। अलङ्कारशास्त्र में जिन रसों का वर्णन है वे प्रायः