पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३२०

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पञ्चभूत । हम लोगों ने कहा था कि कौतुक में भी नियम पालन न करने को एक पाड़ा वर्तमान है। वह प्राघात यदि अधिक मात्रा में न हो तो उससे मन में एक प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है और उसी आकम्मिक उत्तेजना के धक्के से मनुष्यों को हँ नना पड़ता है । जो सुस- ङ्गत उचित है वह सदा से नियमित है और असङ्गत थोड़ी देर के लिए, नियम मङ्ग करने से, उत्पन्न होता है । जिस काम के होने का जो म्धान और ममय नियत है उसके उसी प्रकार होने पर हम लोगों के मन में किसी प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न नहीं होती। जो बात कभी नहीं हुई है अथवा जिसे हम लोगों ने पहले नहीं दबा है उसके सहसा देखने पर मन में एक विलक्षण आघात लगता है, जिससे हम लोगों की चेतनता जाग उठती हैं और हम लोग हंस पडते हैं। उस दिन हम तीनों ने यहीं तक विचार किया था। इनमें अधिक और कोई बात उस दिन नहीं हुई, परन्तु इस कारगा ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इसके प्राग कोई बात कही ही नहीं जा मकती । कहन को और भी बहुत बात है श्रीमती दीप्रि ने पूछा है कि हम चार पण्डितों का सिद्धान्त यदि सत्य है ता मार्ग में चलन चलते ठोकर लग जाने से अथवा कहीं से दुर्गन्धि आने से भी हम लोगों का हँसना चाहिए। और जो हँसी न आवे ता, कम से कम, उत्तेजना से उत्पन्न सुग्य का अवश्य अनुभव करना चाहिए। इस प्रश्न के द्वारा हम लोगों का सिद्धान्त वण्डित नहीं होता किन्तु वह थोड़ा संकुचित हो जाता है । इस प्रश्न के द्वारा हम ।