पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३२६

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पञ्चभूत। ३१५ वायु ने कहा-मैं अपने पहले अपराध का दूर करने का तो प्रयत्न करता हूँ परन्तु दुसरे अपराध से छुटकारा पाने के लिए मुझे कोई उपाय नहीं देख पड़ता । अतएव मेरी प्रार्थना है कि मेरा दुसरा अपराध विद्वज्जन अपनी उदारता से क्षमा करें । मेरे कहन का तात्पर्य यह है कि जो पदार्थों की ओर ध्यान न देकर कंवल पदार्थों के गुणों को ही ग्रहण करते हैं उनपर हाम्य-रम का असर नहीं पड़ सकता । वे हाम्य-रम के रसिक नहीं हैं। तिति ने कहा--नहीं नहीं. अभी और स्पष्ट करके कहो । वायु ने कहा एक उदाहरण देता हूँ। देखा, हमें साहित्य में किसी सुन्दरी का वर्णन करना है तो किसी व्यक्ति का चित्र अङ्कित करने के लिए प्रयत्न नहीं किया जाता; किन्तु सुमंझ, अनार, कदम्ब, बिम्ब प्रादि के गुणों का एक सूची बना कर रख दो जाती है, और इस सूची का सम्बन्ध समस्त स्त्री-जाति के साथ कराया जाता है। चाहे किसी भी सुन्दरी का वर्णन करना हो, उसके स्थान पर यही मृची उठा कर रख दी जाती है। अतएव चित्र कं समान हम काई वात स्पष्ट नहीं देख सकते और न हम लोग स्वयं ही चित्र बना सकते हैं। इसलिए कौतुक के एक प्रधान अङ्ग लोग वञ्चित रह जाते हैं। हम लोगों के प्राचीन काव्यों में प्रशंसा के व्याज से गजेन्द्र की गति के साथ स्त्रियों के चलने की तुलना की गई है। यह तुलना दूसरे देशों के काव्यों में उपहानाम्पद समझी जायगी। परन्तु प्रश्न यह है कि हम लोगों के देश में ऐसी तुलना कैसे उत्पन्न हुई और सर्वमाधारण में इसका प्रचार ही क्योंकर हुआ ? इसका कारण यह है कि हमारे देश में पदार्थ से उसके गुण अना-