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विचित्र प्रबन्ध।

क्षति होती है उसी धूमकेतु की, इसी प्रकार अन्तर्जगत से बाह्य-जगत् का कभी यथारीति संघर्ष नहीं होता। यदि कभी हो भी जाय तो उसमें बाह्यजगत् को ही हटना पड़ेगा। जो लोग हाथी को अत्यन्त सत्य समझते हैं, जिनके सामने हाथी की सत्यता बड़ी प्रबलता से घूम रही है, वे गजेन्द्र गमन की उपमा में गजेन्द्र को अलग रख कर केवल उसके गमन का ही ग्रहण नहीं कर सकते। गजेन्द्र अपने विशाल शरीर को लिये अटल रूप से काव्य-मार्ग में जाकर अड़ जाता है। परन्तु हम लोगों के लिए चाहे गज हो या गजेन्द्र, किसी की कुछ भी सत्ता नहीं है। गज हम लोगों के सामने इतनी प्रबलता से नहीं खड़ा रहता कि केवल उसके गमन के लिए उस समूचे का भी स्मरण रखना पड़े।

क्षिति ने कहा—हम लोग अपने हृदय में एक बाँस का किला सा बनाते हैं। उसीमें हम लोगों का अन्तर्जगत सुरक्षित रहता है। अतएव गजेन्द्र हो, सुमेरु हो अथवा पृथिवी, कोई भी हम लोगों के हृदय में स्थान नहीं पा सकता। यह बात केवल काव्य हा के लिए नहीं है, किन्तु ज्ञान-राज्य में भी हम लोग बाह्य-जगत को तनिक भी स्थान नहीं देते। इसका मैं एक सीधा सादा उदाहरण आप लोगों को सुनाती हूँ। हम लोगों के गाने में सात सुर हैं। वें भिन्न भिन्न पशु-पक्षी आदि के कण्ठस्वरों से लिये गये हैं। हम लोगों के सङ्गीत के विषय में यह बात बहुत दिनों से कही जाती है। परन्तु हमारी सङ्गीत-विद्या के उस्तादों के मन में अभी तक इस विषय में कोई सन्देह उत्पन्न नहीं हुआ। यद्यपि बाह्य-जगत एक स्वर से इसका प्रतिवाद करता है, परन्तु हम लोग उधर ध्यान