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विचित्र प्रबन्ध।

प्रत्यक्ष की तरह स्वयं अनुमान कर लेना कठिन है। अतएव उनको जब हम प्रत्यक्ष वर्त्तमान देख पाते हैं तभी उस रस का हृदय में उदय होता है। पर दो वृक्षों, एक घर अथवा एक नदी, की कल्पना कर लेना कुछ कठिन नहीं है। इतना समझ जाने का काम भी हमारे हाथ में न रख कर चित्र-द्वारा उक्त दृश्यों को प्रत्यक्ष दिखाना हम पर घोर अविश्वास करना है।

इसी कारण मुझे अपने देश की 'यात्रा' (रामलीला, रहस की लीला के ऐसे स्वाँग) अधिक अच्छी मालूम होती है! 'यात्रा' के अभिनय में अभिनेता तथा दर्शकों के बीच विशेष अन्तर नहीं रहता। यहाँ परम्पर के विश्वास और अनुकूलता पर भरोसा रखने के कारण सभी काम बड़ी उत्तमता से किये जाते हैं। यहाँ नाटक का सार पदार्थ––काव्यरस––अभिनय के द्वारा, फुहारे की तरह दर्शकों के आनन्दित हृदय पर पड़ता है। जब कम फूलोंवाले बाग से फूल ढूँढ़ने में मालिन विलम्ब कर देती है तब उसे प्रमाणित करने के लिए इसकी क्या आवश्यकता है कि पाठकों के आगे समूचे समूचे पेड़ ला कर खड़े कर दिये जायँ? समूचे बाग का पता तो वह अकेली मालिन ही दे देती है। यदि ऐसा न हो तो उस मालिन में ही क्या गुण ठहरा, और वे दर्शक भी काठ के पुतले की तरह क्या करने बैठे हैं?

शकुन्तला के कवि को यदि रङ्गमञ्च पर दृश्यपट (सीनरी) की बात सोचनी पड़ती तो वह शुरू में ही मृग के पीछे रथ दौड़ाना बन्द कर देते। यह ठीक है कि वह महाकवि थे, रथ के रुकने पर भी उनकी क़लम न रुकती; किन्तु मेरा कहना यह है कि जो तुच्छ