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विचित्र प्रबन्ध।

उस बात को भूल जाते हैं और जब उस बात को कहते हैं तब इस बात को। यह हम लोगों की एक बहुत बड़ी शक्ति है, इसमें सन्देह नहीं। परन्तु इस शक्ति के कारण व्योम ने जिस सुभीते का उल्लेख किया है उसको मैं सुभीता नहीं समझती। हम लोगों में काल्पनिक सृष्टि करने की शक्ति है इस कारण अर्ध-लाभ, ज्ञान-लाभ तथा सौन्दर्योपभोग के विषय में हम लोग उदासीन रहते हैं, इनकी ओर से सन्तुष्ट रहना ही हम लोग विशेष उचित समझते हैं। हम लोगों को किसी भी बात की आवश्यकता नहीं है! यूरोपीय विद्वानों का ढङ्ग ठीक हमसे उलटा है। वे अपने वैज्ञानिक अनुमान को हज़ारों बार अनेक प्रकार की परीक्षाओं के द्वारा प्रमाणित करते हैं तथापि उनको सन्देह बना ही रहता है। हम लोगों के हृदय में यदि कोई एक उत्तम और सुसङ्गत सिद्धान्त उत्पन्न हो तो हम लोग उस सिद्धान्त की उत्तमता और सुसङ्गति देखने में ही लट्टू हो जाते हैं, बाह्य-जगत् में उसकी परीक्षा करना आवश्यक नहीं समझते। ज्ञान-लाभ के विषय में जो बातें हैं वे ही हृदय की वृत्तियों के लिए भी हैं। हम सौन्दर्य का विचार करना चाहते हैं, परन्तु उसके लिए अपने मानसिक भावों को बाहर अङ्कित करना उचित नहीं समझते, किन्तु जो कुछ हो उसी में सन्तुष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि आलङ्कारिक अत्युक्ति को सत्य मान कर उसी के अनुसार हम लोग एक मूर्त्ति गढ़ लेते हैं और उसी असङ्गत विरूप तथा काल्पनिक मूर्त्ति को अपनी इच्छा के अनुसार परिणत करके तृप्त हो जाते हैं किन्तु अपने देवता को, अपने हृदय के आदर्श को सुन्दर बनाने के लिए प्रयत्न नहीं करते। हम भक्ति करना चाहते हैं