पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२५
पञ्चभूत।


इस बात को और बढ़ाने की इच्छा से वायु ने कहा— क्यों आवश्यकता क्यों है?

दीप्ति ने कहा—कवि काव्य-संसार में अपने शासन का तिर- स्कार जिम प्रकार नहीं होने देता,—छन्दों की शिथिलता, विन्यास की अप्रौढ़ता, शब्दों की कर्कशता आदि को देखना पसन्द नहीं करता,—उसी प्रकार हम लोगों के आचार, व्यवहार, भूषण आदि के विषय में भी समाज का कठोर शासन है। उसका पालन न करना अनुचित है। यदि समाज इस प्रकार कठोर शासन न करें तो उसकी शृङ्गला और सुन्दरता बिगड़ जाय।

क्षित्ति ने कहा—व्योम यदि मनुष्य न होकर शब्द होता तो उसको भट्टीकाव्य में भी स्थान न मिलता, केवल मुग्ध-बोध व्याकरण के सूत्रों के सहारे ही उसे रहना पड़ता।

हमने कहा—समाज का सुन्दर, शिष्ट और शृङ्खलित बनाना हम सबका कर्तव्य है। परन्तु अन्यमनस्क बेचारा व्योम और सब बातों को भूलकर लम्बे पैर बढ़ाते चला जाता है तो क्या बुरा लगता है!

दीप्ति ने कहा—यदि उनके कपड़े अच्छे होते तो वह और भी अच्छा मालूम होता।

क्षिति ने कहा—सच सच कहो, यदि व्याम अच्छे अच्छे कपड़े पहने तो क्या अच्छा लगेगा? यदि हाथी को मोर की पूँछ लग जाय तो क्या उससे हाथी की शोभा बढ़ेगी, और मोर ही क्या हाथी की पूँछ से शोभित होगा? इसी प्रकार तुम्हार व्योम को भी वायु के कपड़े नहीं मजते, और वायु यदि व्योम का कपड़ा पहने तो वह घर में घुसने देने के योग्य भी न रह जाय।