पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३३७

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विचित्र प्रबन्ध ! वायु ने कहा-वेश-भूषा, आचार-व्यवहार आदि की त्रुटि जिस प्रकार अज्ञता, असावधानता. मूर्खता आदि प्रकाशित करती है उसी प्रकार वह देखने में भी कुत्मिन मालूम होती है । इसी कारणा आज यह बङ्गाली-समाज इतना श्रीहीन होगया है। दरिद्र और समाज से बहिष्कृत दोनों ही समान हैं। आज बङ्गाली-समाज जैसे पृथिवी के समाज से बाहर है। हिन्दुस्तानियों की सलाम के समान बङ्गाला के पास साधारण अभिवादन का काई शब्द नहीं है। इसका कारण यह है कि बङ्गाली का कंवल घर में रहना है, वह केवल गाँव का रहनेवाला जीव है । वह अपने घर और गांव के सम्बन्धियाँ को जानता है, पृथिवी के और किसीसं उसका सम्बन्ध ही क्या है ? इसी कारण किसी अपरिचित समाज के साथ शिष्टाचारका नियम हैडने पर भी उसे नहीं मिलता। अँगरज हो चाहं चीना, सभी के शिष्टाचार के लिए हिन्दुस्तानी आदमी मलाम कह कर अभिवादन कर सकता है, और हम बङ्गाली वहाँ नमस्कार ला कर नहीं सकन, कंबल असभ्य की तरह खड़े रहते हैं। बङ्गाली स्त्रियाँ भी प्रावृत नहीं हैं। वे सदा ही अनावृत रहती हैं, क्योंकि वे ना सदा घर में ही रहती हैं। श्रतएव जेठ, मसुर आदि सम्बन्धियों से प्रचलित- लज्जा का परिमाण तो अधिक है परन्तु साधारमा सभ्य समाज में लना-विषयक उनका कुछ भी ध्यान नहीं है ! कपड़ा पहनने और न पहनने के विषय में बङ्गाली पुरुषों को भी बड़ी उपेक्षा है। सर्वदा अपने ही समाज में रहने से, दुसरे समाजवालों से सम्बन्ध न रहने के कारण, इस विषय में उन लोगों के हृदय में एक प्रकार की उपेक्षा बद्ध-मूल होगई है । अतएव बङ्गालियां की वेश-भूषा. प्राचार-