पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३३९

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विचित्र प्रबन्ध । माधारण वेश से जाते थे और लौकिक व्यवहार के नियमों का भी पालन नहीं करत थे । तथापि समाज न उनको दण्ड देता था और न उनका उपहास करता था। सभी समाजों में इस प्रकार के थाई से महात्मा सदा ही रहते हैं। ये समाज में रहने पर भी समाज से बाहर रहते हैं, और समाज भी इस कारण उनपर अप्रसन्न नहीं होता। क्योंकि वे इस प्रकार रहकर भी समाज का कल्याण करते हैं । परन्तु आश्चर्य है कि बङ्गाल में थोड़े से मनुष्य ही नहीं किन्तु समूचा देश सब प्रकार की स्वभाव-विचित्रताओं का भूल ममाज के नियमों का एक ओर रख कर, अनायास ही उस आध्यात्मिकता के ऊँचे शिखर पर चढ़ता जाता है। हम लोग ढाल ढाले कपड़े और प्राचारों को लेकर बड़े आनन्द से अपना समय बिता रहे हैं। हम लोग जो चाहँ करें, जैसा चाहें करें, कोई रोकने- टोकनेवाला नहीं है, क्योंकि हम सब लोग समान हैं। सभी परब्रह्म में लीन होने के लिए तैयार बैठे हैं। इसी ममय अपनी बंतरह लम्बी लाठी लिय व्याम वहाँ उप- स्थित हुआ। अाज का उसका वेश दूसरे दिन के वेशों से भी अद्भुत है। क्योंकि आज उत्सव का दिन है इस कारण वह सज कर आया है। ऊपर से एक लम्बी और ढाली-ढाली चपकन पहने है, उसके भीतर और बहुत सं मल कपड़े पहन है । भीतर के कपड़ों के छोर इधर उधर दीख पड़त हैं । व्योम कं इस विलक्षण वेश का देख कर हम लोग हसी न रोक सके । दीप्ति और नदी ने मन ही मन उमका तिरस्कार किया। व्योम ने पूछा-तुम अाज किस विषय का विचार कर रहे हो ?