पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३४०

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पञ्चभूत । वायु ने हम लोगों के विचार का विषय संक्षेप में उसे सुनाया । वायु ने कहा-हमारे मार देशवासियों ने वैराग्य की दशा का वेश बना लिया है। व्योम ने कहा- बिना वैराग्य के संमार का कोई भी बड़ा काम नहीं हो सकता । जिम प्रकार प्रकाश और छाया का सम्बन्ध है उसी प्रकार वैराग्य भी कर्म के साथ मिला हुआ है। जिसमें वैराग्य जिम परिमाण में वर्तमान है उसीक अनुसार वह संसार में काम भी करता है। क्षिति ने कहा-ठीक है, इसीलिए जिस समय पृथिवी का ममस्त समाज अनेक प्रकार के सुखों की आशा से दिन-रात परि- श्रम कर रहा था उस समय वैरागी डारविन संसार के हजार काम छोड़ कर इस बात का प्रमाणित करने के लिए प्रयत्न कर रहा था कि मानव-समाज का प्रादि-पुरुष वानर था। इस मामा- चार के ग्राम करने के लिए डारविन का बड़ा वैराग्य-माधन करना पड़ा था। व्याम ने कहा--यदि गरीबाल्डी संसार की आसक्ति से अपने का बाहर न करता ना इटली का स्वाधीनता कान दिलवाना ? संमार की जो जातिया कर्म-निपुण हैं वे ही यथार्थ में वैराग्य की महिमा भी जानती हैं । ज्ञान-लाभ के लिए जो मेरु-प्रदेश की हिम-शीतल मृत्यु-शाला के तुषार-रुद्ध द्वार पर बार बार आघात करते हैं, जो धर्म-प्रचार करने के लिए नर-मांस-भक्षी राक्षसों के देश में निर्भय होकर जाते हैं, जो मातृभूमि की पुकार सुन कर बड़ी शीघ्रना से धन-जन-माह-ममता आदि का अनायास छोड कर अनेक कष्ट