पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३४४

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जाता था, पञ्चभूत । न प्रिय ही है, किन्तु अटल कठोर सत्य है । तथापि यह ध्वनि अाज शहनाई के सुर में सुनने से इतनी मधुर क्यों लगती है ? मधुर लगने का कारण यह है कि यद्यपि यह सत्य कठोर है, परन्तु शहनाई के मब से मधुर स्वर में यह गाया जा रहा है- मालूम होता है, मृत्यु भी इसी रागिनी के समान दयावती और सुन्दरी है। इस संसार की छाती पर जो बड़ा भारी पत्थर रक्खा हुआ है, वह इस गान के प्रभाव से हलका मालुम होने लगता है। एक के हृदय से जो वेदना उत्पन्न होती थी, जो क्रन्दन चारा और फैल जो राने की ध्वनि हृदय का विचलित कर दिया करती थी, उसी का जगत के मुँह से ध्वनित करकं शहनाई करुणा-पूर्ण और मान्त्वना-मय रागिनी की मृष्टि करती है। दानि और नदी अपने अतिथि-मत्कार का काम समान करक आई और बैठ गई । परन्तु आज मङ्गलात्सत्र के दिन जब उन लोगां नं न्योम को मृत्युविषयक आलोचना करते देखा तो वे दुखी होकर वहाँ से उठ कर चली गई। परन्तु उन लोगों का दुःखित होना व्योम को मालूम नहीं हुआ। वह दृढ़ता-पूर्वक अपनी बात कहता हो रहा । नाबत बहुत अच्छी बज रही थी इस कारण हम लोगों ने व्योम के साथ बहुत तर्क-वितर्क नहीं किया। व्योम ने कहा-इस नौवत को सुनने से हमारे हृदय में एक बिलकुन्त नई बात उत्पन्न हुई है. हर एक कविता में एक एक विशेष रम वर्तमान रहता है । अलङ्कारशास्त्र में शृङ्गार, करुण और शान्त आदि नामों सं उस रस का विभाग किया गया है। मैं