पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३४६

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पञ्चभूत । करता ? किम के द्वारा सब पदार्थ अपने अपने स्थान से आगे बढ़ायं जातं, और यही सब से अधिक चिन्ता की भी बात होती। उस समय यदि व्याम अद्वैत तत्व की प्रालोचना करने बैठत ता काई भी इनसे हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना न करता कि भाई इस समय रहने दो, समय नहीं है। क्योंकि मृत्यु के न रहने पर समय का भी अन्त न होदा । इस ममय प्रायः मात आठ वर्ष की अवस्था मैं बालक पढ़ना प्रारम्भ करते हैं और पचीस वर्ष तक पढ़ने के पश्चात् कालेज से डिग्री पाकर अथवा फेल होकर निश्चिन्त हो जात हैं । मृत्यु के अभाव में, अमुक अवस्था में पढ़ना प्रारम्भ करना चाहिए और अमुक अवस्था में पढ़ना ममान करना चाहिए, इसका कोई भी नियम न रहता । न ना पढ़ना प्रारम्भ करने का ही नियम होता और न शीघ्रता-पूर्वक समाप्त होने का ही । मब प्रकार के काम- काज का और जीवन-यात्रा का कामा, सेमीकोलन, पूर्णविराम आदि के द्वारा विभाग न हो सकता । व्याम ने इन बातों पर विशेष ध्यान नहीं दिया । वह अपनी धुन में लगा ही रहा और फिर कहने लगा--हम लोगों का स्वर्ग, पुण्य, देवत्व आदि मृत्यु के पर है। यहां पृथिवी पर न्याय नहीं है- मंरी समझ में मृत्यु के बाद सुविचार होता है । पृथिवी में इन्छाएँ पूर्ण नहीं होती, आशा है मृत्यु कं पश्चालू-मृत्यु की कल्पतरू-छाया में-आशाएं पूर्ण होती होंगी। इस जगत् चारों ओर स्थल और कठिन पदार्थ दोग्य पड़ते हैं जिनका आघात हम लोगों के मान- सिक आदर्श पर लगता है। जगत् की जिस सीमा की ओर मृत्यु है, जहाँ सब पदार्थों का अवसान होता है, वहीं हमारी प्रिय और