पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३४७

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विचित्र प्रबन्ध प्रबल वासना का--सुन्दर और शुद्ध कल्पना का--रोकनेवाला कोई नहीं है। हम लोगों के शिव श्मशान-बासी है. अतएव हमारे मङ्गल का सबसे उत्तम आदर्श है मृत्यु । मुल्तानी समाप्त होने पर शाम को----जब सुनहरा अन्धकार चारों ओर फैल रहा था तब--नौवन में पुरवी बजने लगी । वायु ने कहा--मनुष्य अपनी जिन आशाओं और आकांक्षाओं को मृत्यु के उस पार स्वर्गलोक में निर्वासित कर देता है, उन्हीं सबको-अश्र- जल-पावित हृदय के धन को-यह शहनाई का सुर पुन: इस पृथिवी में ही लौटा लाता है। साहित्य, सङ्गीत तथा अन्य ललित कला मनुष्य-दृदय के समस्त नित्य पदार्थो को यहीं इसी जीवन में स्थापित करती है। मानों ये सब कहती हैं कि पृथिवी स्वर्ग है, मत्यता सुन्दर है और यह क्षणिक जीवन ही अमर है। अपने समन्त प्रेम को इकट्ठा करके मृत्यु के उस पार भेज देना चाहिए, अथवा इर्मा पृथिवी में रखना चाहिए, इसी बात पर बहस है वैराग्य कहता है कि मृत्यु के पश्चान ही यथार्थ प्रेम का स्थान है; माहित्य और ललित कला आदि कहते हैं कि हम लोग यथार्थ प्रेम का स्थान इसी लोक में दिखा देते हैं। क्षिति ने कहा-मैं इस विषय में रामायण की एक अपूर्व कथा कहकर इस सभा का विसर्जन करूंगी। राजा रामचन्द्र-अर्थात् मनुष्य-प्रीति नामक सीता को राक्षसों के हाथ से उबार कर ले आये और सुख-पूर्वक अयोध्या पुरी में रहने लगे। इसी समय धर्मशास्त्रों का एक दल आया और उसने प्रीति को कलङ्कित बताया। उस दल ने कहा कि यह अनित्य पदार्थों