पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पञ्चभूत। के साथ रह कर आई है अतएव इसका परित्याग करना चाहिए । अनित्य पदार्थों के साथ रहने पर भी यह दवांश से उत्पन्न राज- कुमारी कलङ्कित नहीं हुई थी, परन्तु इस बात को आज प्रमाणित कौन करंगा ? इसका प्रमाणित करने के लिए एक अग्नि-परीक्षा र्थर. पर वह परीक्षा ता होगई है। अग्नि से यह राजकुमारी जली नहीं, किन्तु और भी अधिक उज्वल हाकर चमकने लगी। तथापि धर्मशानों के कानाफूसी करने से अन्त में राजा ने प्रीति को मृत्यु-- तमसा---- तीर पर निर्वासित कर दिया । तदनन्तर महाकवि के और उनके शिष्यों के आश्रम में यह अनाथिनी रहने लगो। वहाँ इसन लव और कुश--काव्य और ललित कला-नामक दो पुत्र उत्पन्न किया। वही दानां बालक ऋवि से राग-रागिनी की शिक्षा पाकर राज-सभा में आज अपनी परित्यक्ता माता का यशोगान करने आये हैं। इन नवीन गायकों के गाने से विरही राजा का चित्त व्याकुल हो गया और उनकी आँखों से आंसुओं की धारा बह चली । अभी उत्तरकाण्ड समाप्त नहीं हुआ है। अभी ता विजय-महोत्सव देखना बाकी है। तो क्या त्याग-प्रचारक प्रवीण वैराग्य-धर्म का विजय- महोत्सव ? जी नहीं, प्रेममङ्गल-गायक इन दोनों अमर बालकां का { वैज्ञानिक कौतूहल। विज्ञान की प्रादिम उत्पत्ति और उसके अन्तिम उद्देश्य के विषय में व्योम और क्षिति में अनेक प्रकार का तर्क-वितर्क हो रहा था। इसी विषय में व्योम ने कहा- यद्यपि हम लोगों की कौतूहल-वृत्ति के कारण हो विज्ञान की उत्पत्ति हुई है, तथापि मेरा विश्वास है कि हम लोगों का कौतूहल