पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३५३

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विचित्र प्रबन्ध । , लोगों की मौट नहीं मालूम होते । अतएव जब तक हम लोगों की यह ज्ञान था कि इन्द्र हमारे लिए पानी बरसात हैं, वायु हम नंग के लिए शीतल वायु बहाता है, अग्नि से हम लोगों को प्रकाश मिलता है, तब तक हृदय में विशेष आनन्द होता था,- उस समय एक प्रकार की तृप्ति थी। परन्तु अब हम लोगों को विदित हा है कि वायु का चलना, धूप का होना और पानी बरसना आदि का सम्बन्ध किसी की इच्छा से नहीं है। प्रिय- अप्रिय. योग्य-अयोग्य आदि का विचार न कर ये सब काम नियमित हान रहते हैं। आकाश में जलीय परमाणु जब शीतल वायु के द्वारा एकत्रित होग उस समय महात्माजी के मस्तक पर पानी पड़होगा. चाई इससे उन्हें मर्दी हो क्यों न हो जाय। कोई दुष्ट ही क्यों न हो, तो भी उसके खेत में पानी बरसता ही है। विज्ञान की प्रालाचना करने से आज हम लोगों की यही धारगा? हो गई है। यह धारणा अभ्यस्त हो गई है। परन्तु इससे हृदय तृप नहीं है. यह बात हम लोगों को अच्छा नहीं मालूम होती ! मैंने कहा-पहले हम लोगों ने स्वाधीन इच्छा का कत्तत्व सिद्ध किया था. परन्तु आज आप लोग उस पद पर नियम के? वरण करते हैं। विज्ञान की आलोचना के द्वारा यह निश्चय होना है कि यह जगन आनन्द-शून्य और इच्छा-शक्ति-शून्य है। परन्तु जब तक हम लोगों के हृदय में आनन्द की मात्रा वर्तमान है, तब तक उसे जगन् के हृदय में बिना स्थापित किये हमलागां को प्रम- अता नहीं है। हम लोगों के हृदय में संसार के नियमों का एक प्रकार का विपर्यय है, और उस विपर्यय को संसार में कहीं भी