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विचित्र प्रबन्ध।

रहता है―हे चतुरानन! ऐसे मनुष्यों के कुटुम्ब में, साथ में, तथा परोस में रहना―

शिरसि मा लिख मा लिख मा लिख।

इस पृथिवी में सारे पदार्थ प्रकाशवाले नहीं हैं। आग के बिना कोयला नहीं जलता, परन्तु स्फटिक बिना किसी की सहा- यता से सदा चमका करता है। कोयले से बड़े बड़े कारख़ाने चलते हैं, और स्फटिक की माला बना कर वह केवल गले में पहन ली जाती है। कोयला आवश्यक पदार्थ है और स्फटिक मूल्य- वान् पदार्थ।

स्फटिक ही के समान कुछ दुर्लभ मनुष्य भी स्वभाव ही से प्रकाशित होते रहते हैं। वे सहज ही अपने को प्रकाशित करते हैँ। उनको किसी उपलक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु उनसे किसी विशेष स्वार्थ के सिद्ध होने की आशा कोई नहीं रखता। वे अपने को स्वयं प्रकाशित कर रहे हैं, यह देखकर ही लेग आन- न्दित होते हैं। प्रकाश को मनुष्य बहुत अच्छा समझता है, वह उससे बड़ा प्रेम करता है। यहाँ तक कि अपने आवश्यक कामों को छोड़कर, भोजन करना भूलकर, मनुष्य प्रकाश के लिए लालायित हो उठता है। इस गुण के कारण मनुष्य निस्सन्देह एक प्रकार का श्रेष्ठ पतङ्ग कहा जा सकता है। प्रकाश-मय आँखों को देखकर जो जाति प्राण देने को तैयार हो जाती है उसका विशेष परिचय देने की आवश्यकता नहीं।

परन्तु सभी पतङ्ग के पंख लेकर पैदा नहीं हुए। सभी को प्रकाश का मोह नहीं है। बहुत मनुष्य बुद्धिमान् और विवेकी भी