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विचित्र प्रबन्ध।

मेघदूत से एक तथ्य को पाकर हम आनन्दित हुए हैं। वह यह कि उस समय भी मनुष्य थे, और उस समय भी आषाढ़ का प्रथम दिन नियमित समय पर आता था।

परन्तु वररुचि ने जिनके लिए अनुचित विशेषण का प्रयोग किया है, क्या वे भी इस लाभ को लाभ समझेंगे? क्या इससे ज्ञानवृद्धि में सहायता मिल सकती है, या देश की उन्नति हो सकती है, अथवा चरित्र के सुधारने मेँ ही कुछ सहायता मिल सकती है? अतएव हे चतुरानन, जो अकारण और अनावश्यक सरस काव्य है वह केवल रसिकों के लिए ही रक्खा रहे। उनसे आवश्यक और हितकर वस्तु की प्रसिद्धि में कमी या उसके गाहकों का अभाव न होगा।


पन्दरह आना

धनियों का बाग़ उनके मकान से बड़ा और सुन्दर होता है। मकान आवश्यक है और बाग़ अधिक है। बाग़ के बिना भी काम चल सकता है। सम्पत्ति की उदारता अनावश्यक से ही अपने को प्रमाणित करती है। बकरे के जितने सींग हैं उतने ही से उसका काम चल जाता है। परन्तु हरिण के सींगों की पन्दरह आने भर अनावश्यकता देखकर हम लोग मुग्ध हो जाते हैं। मोर की पूँछ केवल रङ्ग-बिरङ्गी होने के कारण हो बढ़ी चढ़ी नहीं है। उसके विस्तार-गौरव को देख कर अनेक पक्षियों की पूँछ को लज्जा से व्याकुल होना पड़ता है।