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विचित्र प्रबन्ध।

गढ़ाने के लिए चन्दे का रजिस्टर लेकर किसी को घर घर रोते फिरना न पड़ेगा।

ऐसे मनुष्य बहुत ही थोड़े हैं जो मरने के बाद अमर होते हैं। इसी कारण यह पृथ्वी रहने के योग्य भी है। रेलगाड़ी के सभी डब्बे यदि रिज़र्व होते तो साधारमा यात्रियों की क्या दशा होती? एक तो बड़े आदमी अकेले ही एक सौ के बराबर होते हैं― अर्थात् जितने दिनों तक जीते हैं उतने दिनों तक वे अपने भक्तों तथा निन्दा करनेवालों के हृदय में सैकड़ों मनुष्यों की जगह रोके रहते हैं―उसके बाद, फिर, मरने पर भी वे जगह नहीं छोड़ते। जगह छोड़ने की कौन कहे, मरने का सुयोग पाकर वे अपना अधिकार और भी अधिक बढ़ा लेते हैं। ऐसी स्थिति मेँ हम लोगों की बचत यही है कि उनकी संख्या थोंड़ी है। नहीं तो उनके समाधि-स्तम्भों के मारे ग़रीबों को झोपड़ी बनाने के लिए भी स्थान न मिलता। पृथिवी इतनी तंग है कि इसमें स्थान पाने के लिए जीवित मनुष्य आपस में लड़ा-भिड़ा करते हैं। भूमि में हो चाहे हृदय मेँ, औरों की अपेक्षा अपना अधिकार फैलाने के लिए कितने ही मनुष्य जालसाज़ी करने और अपना लोक-परलोक बिगाड़ने के लिए तैयार रहते हैं। यह लड़ाई तो जीवित की है, अतएव बराबर की लड़ाई है। किन्तु मृत मनुष्य के साथ जीवित की लड़ाई बड़ी ही बेढब है। मृत मनुष्यों की समस्त दुर्बलताएँ दूर हो गई हैं। वे इस समय पूर्णता प्राप्त कर कल्प-लोक में बिहार कर रहे हैं, और हम लोग माध्याकर्षण, केशों के आकर्षण आदि अनेक प्रकार के आकर्ष-विप्रकर्षणों से पीड़ित हो रहे हैं। हम कैसे उनसे पेश पा सकते हैं? इसी कारण विधाता