पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४
विचित्र प्रबन्ध।

चाहिए कि इस उद्देश्य-हीनता में ही हम लोग यथार्थ रूप से जीवन का उद्देश्य सिद्ध कर सकते हैं।

यदि विधाता ने व्यर्थ ही हमारी सृष्टि की है तो हम धन्य हैं। किन्तु यदि उपदेशक के कहने से―उसके दबाव से―मैं समझूँ कि मुझको उपकार करना चाहिए, काम में लगना चाहिए, तो मैं जिस व्यर्थता की सृष्टि करूँगा वह मेरी अपनी उत्पन्न की हुई व्यर्थता होगी। उसकी जवाबदेही मेरे सिर पर होगी। परोपकार करने के लिए सबका जन्म नहीं हुआ है। अतएव उपकार न करना कोई लज्जा की बात नहीं है। मान लो, मिशनरी बनकर मैं चीन का उद्धार करने नहीँ गया; देश ही मेँ रहे कर गीदड़ का शिकार तथा घुड़दौड़ का जुआ खेल कर समय बिताया, तो इससे क्या? यदि यों समय बिताना को आप व्यर्थ कहते है तो मैं कह सकता हूँ कि यों समय बिताना चीन-उद्धार की चेष्टा के बराबर भयानक और व्यर्थ नहीं है।

सभी घास धान नहीं है। पृथिवी मेँ प्रायः सब घास ही है, धान बहुत ही कम हैं। इस पर घाम का अपनी निष्फलता के लिए विलाप न करना चाहिए। उसे स्मरण रखना चाहिए की वह अपनी श्यामता के द्वारा पृथिवी की धूल को ढँके हुए है―वह अपनी चिर-प्रसन्न स्निग्धता के द्वारा सूर्य की प्रखर किरणों के ताप को कोमल बना रही है। मालूम होता है कि घास जाति के कुश-काश आदि ने धान बनने के लिए बड़ा ज़ोर लगाया था। मालूम होता है, सामान्य घास के रूप में न रह कर दूसरे की और लक्ष्य रख कर अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए वे भी उत्तेजित हो