पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५
नववर्षा।

उठे थे, परन्तु तो भी वे धान नहीं बन सके। सदा दूसरे के प्रति तीक्ष्ण दृष्टि रखने की एकाग्र चेष्टा कैसी होती है, इस बात को दूसरा ही ख़ूब समझता है। सारांश रूप से यह बात कही जा सकती है कि इस प्रकार की पर-परायणता विधाता की इच्छा के अनुकूल नहीं है। इसकी अपेक्षा साधारण तृणा के समान सुन्दर नम्र कोमल तथा अप्रसिद्ध रहना ही अच्छा है; वह निष्फलता भी अच्छी है।

उपसंहार में यही कहा जा सकता है कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, एक पन्दरह आना और दूसरे एक आना। पन्दरह आने मनुष्य शान्त हैं और एक आना अशान्त; पन्दरह आने अना- वश्यक हैं और एक आना आवश्यक। हवा में चलनेवाले और जल उठनेवाले आक्सिजन का परिमाण थोड़ा रहता है और स्थिर तथा शान्त नाइट्रोजन का परिमाण अधिक। इसके विपरीत यदि होता तो आज पृथिवी कभी की जल कर राख हो गई होती। इसी प्रकार संसार मेँ भी पन्दरह आने भर वाला दल जब एक आने भर वाले दल के समान अशान्त और आवश्यक होने का प्रयत्न करने लगे तो निश्चित ही इस संसार का कल्याण नहीं समझना चाहिए। उस समय जिनके भाग्य मेँ मरना होगा उनको मरने के लिए तैयार होना पड़ेगा।


नववर्षा

युवावस्था में अपने विषय का कुछ भी यथार्थ ज्ञान नहीं था, और न संसार ही का ज्ञान था। मैं क्या होऊँगा, क्या नहीं