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नववर्षा।

के कुञ्ज फूले हुए कदम्ब-वृक्षों से सुशोभित हो रहे हैं, उदयन की कथा जाननेवाले ग्राम-वृद्धों के घर के पास जो वटवृक्ष तोतों के गूँज रहे हैँ, वे ही हम लोगों के परिचित क्षुद्र संसार को परास्त कर विचित्र सौन्दर्य के नित्य सत्य से उद्भासित हा दिखाई देने लगे।

विरही व्याकुल है, तथापि कवि ने मार्ग छोटा नहीं बनाया। उन्होंने आषाढ़ की नीली मेघछाया से आवृत पहाड़-नदी-नगर-जन-पद आदि से होते हुए तथा वहाँ वहाँ ठहरते हुए भाव के आवेश के कारण अलमगति से यात्रा की है। जिसने उनकी मुग्ध दृष्टि को अभ्यर्थना करके पुकारा है, उससे वे 'नहीं' नहीं कह सके। कवि ने पाठकों के चित्त को पहले तो प्रबल विरह के वेग से बाहर निकाला है, और फिर मार्ग के सौन्दर्य का दिखाकर उसकी चाल धीमी कर दी है। जिस चरम स्थान की ओर मन दौड़ा जा रहा है उस स्थान का मार्ग लम्बा चौड़ा होने पर भी मनोहर है। उस मार्ग की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

वर्षा में चिरपरिचित संसार को छोड़कर मन बाहर की ओर जाने के लिए व्याकुल होता है। पूर्व-मेघ में कवि ने हमारी उसी आकाङ्क्षा की उमङ्ग बढ़ा कर उसी का मधुर संगीत छेड़ा है। कवि मेघ को हमारा साथी बनाकर अपरिचित पृथ्वी के बीच से हमको ले चले हैं। वह पृथ्वी 'अनाघ्रातं पुष्पं' ( बिना सुँधा हुआ फूल ) है। वहाँ भूमि हमारे दैनिक भोग के द्वारा मलिन नहीं हुई है। वहाँ की भूमि में हम लोगों के परिचय की चहारदीवारी से कल्पना को कोई बाधा नहीं प्राप्त होती। जैसा यह मेघ है वैसी ही वह पृथिवी है।