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विचित्र प्रबन्ध।

हमारे इस सुख-दुःख-थकन और शिथिलता से पूर्ण जीवन ने उसे कहीं पर छुआ तक नहीं। प्रौढ़ अवस्था के निश्चय के भाव ने अपने घेरे से घेर कर उसे अपने घर के बाग़ के अन्तर्गत नहीं कर लिया।

अज्ञात संपूर्ण के साथ नवीन परिचय ही पूर्व-मेघ है। नये मेघ का एक और भी काम है। वह हमारे चारों ओर एक बहुत ही एकान्त घेरा बना कर "जननान्तरसौहृदानि" स्मरण करा देता है। वह अद्भुत सौन्दर्य-लोक में किसी चिर-परिचित और चिर-प्रिय के लिए मन को उत्कण्ठित कर देता है।

पूर्व-मेघ में अनेक विचित्र पदार्थों के साथ सौन्दर्य का परि- चय कराया गया है और उत्तर-मेघ में उस एक के साथ आनन्द- सम्मिलन। पृथिवी में बहुत के बीच होकर वही सुख-यात्रा है और स्वर्ग में एक के बीच होकर वही अभिसार का परिणाम है।

नववर्षा के दिनों में इस काम-काज के क्षुद्र संसार को कौन न निर्वासन कहेगा! हम प्रभु के शाप ही से यहाँ अटके पड़े हैं। मेघ आकर बाहर यात्रा करने के लिए बुलाता है, यही पूर्व- मेघ का विषय है। और, यात्रा के अन्त में चिर-मिलन के लिए आश्वास देना ही उत्तर-मेघ का संवाद है।

सब कवियों के काव्यों के गूढ़ अभ्यन्तर में यह पूर्व-मेघ और उत्तर-मेघ है। सभी बड़े बड़े काव्य हम लोगों को बृहत् की ओर खींचकर लाते और एकान्त की ओर जाने का सङ्केत करते हैं। पहले वे बन्धन तोड़ कर निकालते हैँ और पीछे एक महान् के साथ बाँध देते हैं; प्रात:काल मार्ग के निकट लाते हैं और सन्ध्या को घर पहुँचा देते हैं। तान के साथ साथ एक बार आकाश-