पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३
पर-निन्दा

पाताल में घुमा फिरा कर सम (ताल) के बीच पूर्ण आनन्द में लाकर खड़ा कर देते हैं।

जिस कवि के पास तान तो है, किन्तु कहीं 'सम' नहीं है, जिसके पास केवल उद्यम है, आश्वास नहीं है, उसका कवित्व उच्च काव्यों की श्रेणी में स्थायी नहीं हो सकता। अन्त को कहीं न कहीं पहुँचा देगा, इसी भरोसे पर हम अपने चिर-परिचित संमार से बाहर निकल कर कवि के साथ यात्रा करते हैं। पुष्य- सुगन्धित मार्ग से ले जाकर अन्त को किसी शून्य गढ़े के किनारे छोड़ देना पाठकों के साथ विश्वासघात करना है। इसी कारण किसी कवि का काव्य पढ़ने के समय हम लोगों के हृदय में दो प्रश्न उपस्थित होते हैं; (१) काव्य का पूर्व-मेघ हमको निकाल कर कहाँ लिये जाता है और (२) उत्तर-मेघ किस फाटक के सामने ले जाकर उपस्थित करता है।


पर-निन्दा

पर-निन्दा इतनी पुरानी और व्यापक है कि इसके विरुद्ध सहसा ऐसा-वैमा कोई मत प्रकाशित कर देना ढिठाई में दाख़िल होजाता है। खारी पानी पीने के योग्य नहीं होता, इस बात को एक छोटा सा बच्चा भी जानता है। परन्तु जब देखते हैं कि सातों समुद्रों का जल खारी ही है, जब देखते हैं कि इसी खारी जल से यह सारी पृथ्वी घिरी हुई है, तब यह कहने का किसी तरह साहस नहीं होता कि यदि समुद्रों का जल खारी न होता तो कैसा अच्छा