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विचित्र प्रबन्ध

का किसी प्रकार का द्वेष हो, और इस कारण हम उन्हें मारते हों। बात यह है कि वह दुर्गम वन में रहता है और भागने में होशियार है, इसी कारण मारा जाता है।

मनुष्य का चरित्र, विशेष कर उसके दोष, आडम्बर की झाड़ी में छिपे रहते हैं; और, आहट पाते ही दौड़ मार कर आँखों की ओट हो जाना चाहते हैं। इसी कारण निन्दा मेँ इतना सुख है। मैं नाड़ी और नक्षत्र का सब हाल जानता हूँ। 'मुझसे कोई बात छिपी नहीं है', निन्दक के मुँह से यह बात सुनते ही मालूम पड़ जाता है कि यह शिकारी जाति का है। तुम अपनी जो बातें छिपाना चाहते हो, मैंने उन्हीं बातों का पीछा करके पकड़ लिया है। जल में छिपी हुई मछलियों को हम बाँस की छीप डाल कर पकड़ते हैं; आकाश में उड़नेवाले पक्षियों को बाण मार कर गिराते हैं; वन के पशुओं को जाल में फाँसते हैँ―इन कामों में कितना सुख है! जो छिपता है उसे प्रकाशित करने के लिए, जो भागता है उसे पकड़ने के लिए, मनुष्य क्या क्या नहीं करता!

दुर्लभ वस्तुओं के प्रति मनुष्यों को एक प्रकार का मोह हुआ करता है। मनुष्य समझता है कि थोड़े परिश्रम से मिलनेवाली वस्तु विशुद्ध नहीं है। जो देख पड़ता है वह ऊपर का आवरणमात्र है, और जो छिपा हुआ है वही सार पदार्थ है। अतएव जब किसी गुप्त वस्तु या बात का उसे परिचय मिलता है तब वह बिना सोचे विचारे आनन्दित हा जाता है और समझता है कि मैंने असली वस्तु का पता पा लिया। यह बात उसके मन में कभी नहीं आती कि ऊपर के सत्य की अपेक्षा भीतर के सत्य में सत्यता की अधिक