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असम्भव कहानी।

उस ममय भी झम झम करके बाहर पानी बरस रहा था। बुआ ने कहानी कहना शुरू किया―एक राजा था। उसके एक रानी थी। आह, मेरी तो जैसे जान बची। क्योंकि सूयो और दूयो * रानी की कथा सुनने से हृदय काँप उठता है। अभागिन दूयो पर भारी आफ़त आने की आशङ्का से हृदय धड़कने लगता है। पहले ही से मन एक प्रकार की उत्कण्ठा से दब जाता है।

जब सुना कि किसी विशेष चिन्ता की कोई बात नहीं है; राजा के कोई पुत्र न था, इस कारण वह व्याकुल था; वह फिर देवताओं से प्रार्थना करने की इच्छा से तपस्या करने के लिए वन जाने को तैयार हुआ, तब जैसे जान में जान आई। यह बात मैं नहीं जानता था कि पुत्र के न होने से भी दुःख होता है। मुझे तो केवल यही मालूम था कि यदि कोई मनुष्य वन में जाता है तो वह केवल मास्टर के हाथ से बचने के लिए।

रानी और एक छोटी कन्या को घर में छोड़ कर राजा चला गया। एक दो वर्ष करके धीरे धीरे राजा को नगर छोड़े बारह वर्षे बीत गये तो भी वह लौट कर नहीं आया।

इधर राजकन्या सोलह वर्ष की हो गई। इसके व्याह का समय बीतने लगा। पर तो भी राजा लौट कर घर नहीं आया।

कन्या की ओर देख कर रानी को खाना-पीना कुछ भी अच्छा न लगता था। वह बेटी के मुँह की ओर देख कर अपने मन में

  • सूयो-दूयो की एक कथा है। दूयो सीधी थी इस कारण उसे अनेक कष्ट भोगने पड़े थे।