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असम्भव कहानी।

रानी ने ठण्डी साँस लेकर कहा―तो क्या उतनी ही छोटी बनी रहती? आप कहते क्या है, आपको वन में गये आज बारह वर्ष बीत गये!

राजा ने पूछा―इसका अभी तक व्याह नहीं किया?

रानी ने कहा―आप तो यहाँ थे ही नहीं; व्याह करता कौन? क्या वर ढूँढ़ने के लिए मैं जाती?

यह सुन कर राजा घबरा उठा। वह सहसा कह उठा― अच्छा, कल प्रातःकाल उठते ही राजद्वार पर मैं जिसका मुँह देखूँगा उसी के साथ इस लड़की का ब्याह कर दूँगा।

राजकन्या चँवर डुलाती रही। राजा भोजन कर चुका।

दूसरे दिन प्रात:काल पलँग से उठकर बाहर आते ही राजा ने देखा कि एक ब्राह्मण का लड़का राज-महल के बाहर जङ्गल से सुखी लकड़ियाँ ला ला कर ढेर कर रहा है। उसकी अवस्था सात आठ वर्ष के लगभग होगी।

राजा ने कहा―इसी के साथ मैं अपनी कन्या का ब्याह करूँगा।

राजा की आज्ञा को कौन टाल सकता है। उसी समय वह लड़का पकड़ मँगाया गया और राजकन्या से उसका ब्याह हो गया।

इतना सुनकर मैं बुआ के बहुत पास खिसक गया और कौतू- हल के साथ पूछा―फिर क्या हुआ? ―क्या उस सात आठ वर्ष की अवस्था वाले भाग्यवान् लकड़ी बटोरने वाले बालक का स्थान पाने की कुछ भी इच्छा मेरे मन में उत्पन्न नहीं हुई? जिस समय बाहर झमा झम पानी बरस रहा था, दीपक टिमटिमा रहा था, मसहरी के भीतर धोरे धीरे बुना कहानी कह रही थी, उस