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असम्भव कहानी।

मैंने अत्यन्त आनन्दित होकर धड़कते हुए हृदय से कहा―इसके बाद?

बुआ ने कहा―इसके बाद इस घटना से दुःखित होकर राज- कन्या अपने उस छोटे से पति को लेकर वहाँ से चली गई।

राजकन्या ने बड़ी दूर के किसी देश में जाकर वहाँ एक महल बनवाया। वहीं रह कर वह उस ब्राह्मण-बालक को, उस अपने नन्हें से पति को, बड़े यत्न से पालने लगी।

मैं थोड़ा हिल-डुल कर पासवाले तकिये को ज़ोर से पकड़ कर बाला―इसके बाद?

बुआ ने कहा―इसके बाद वह बालक रोज़ हाथ में पोथी लेकर पाठशाला जाने लगा।

इस प्रकार गुरूजी से अनेक विद्याएँ सीखता हुआ वह बालक ज्यों ज्यों बड़ा होने लगा त्यों त्यों उसके सहपाठी विद्यार्थी उससे पूछने लगे कि उस सतखंडे महल में जो तुमको लेकर रहती है वह औरत तुम्हारी कौन है?

वह ब्राह्मण का बालक बहुत सोचकर भी यह निश्चय न कर सका कि वह औरत उसकी कौन होती है! उसे इतना ही कुछ कुछ याद है कि एक दिन वह राजद्वार के आगे सूखी लकड़ियाँ जमा कर रहा था। परन्तु उस दिन न जाने क्या गोलमाल मच गया कि वह अपना काम न कर सका। यह बहुत दिनों की बात कैसे ठीक ठीक याद रह सकती है? इसी तरह चार पाँच वर्ष बीत गये। किन्तु उसके साथियों का पूछना बन्द नहीं हुआ। वे उससे