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राजपथ।

इनसे इस घर का बन्द न रक्खो, द्वार खोलदो। सूर्य का प्रकाश देखकर,―मनुष्यों की आहट पाकर, चौंककर, ―भय यहाँ से चला जायगा। सुख और दुःख, शोक और उत्सव, जन्म और मृत्यु, पवित्र वायु की तरह इस घर की खिड़कियों से आने-जाने लगेंगे। सारे संसार के साथ इसका सम्बन्ध स्थापित हो जायगा।


राजपथ

मैं हूँ राजपथ (सड़क)। मुझे एक घड़ी के लिए भी विश्राम नहीं है। मुझे इतना भी विश्राम नहीं है कि मैं इस अपनी कठिन सूखी शय्या पर थोड़ी सी हरी घास लगा सकूँ। इतना भी समय नहीं है कि मैं अपने सिरहाने की ओर एक नीले रङ्ग का छोटा सा जङ्गली फूल खिला सकूँ। बात भी नहीं कर सकता हूँ, तथापि अन्धे की तरह सब अनुभव करता हूँ। रात-दिन, जब देखो तब, पद-शब्द सुनता रहता हूँ।

पृथिवी की कोई भी कहानी में पूर्ण रूप से नहीं सुन पाता। आज कई सौ वर्षों से मैं लाखों आदमियों का हँसना, गाना और बातें सुनता आता हूँ; पर उनका बहुत बड़ा अंश सुन पाता हूँ। शेष अंश सुनने के लिए जब कान खड़े करता हूँ तब देखता हूँ कि कोई नहीं है; वे बातें करनेवाले चले गये।

सम्भव है, समाप्ति और स्थायिता कहीं हो, पर मैं तो उन्हें देख नहीं पाता। एक चरण-चिह्न को भी तो मैं बहुत देर तक अपने ऊपर रख नहीं सकता। मुझपर बराबर पैरों के चिह्न पड़ते है; किन्तु नये नये पद-चिह्न आकर पुराने पद-चिह्नों को मिटा देते हैं।