सवानह अज़ हुक्मे हाकिमाने मदरसा बराय याददाश्त
बर सफ़हात लैलो निहार हमातन मश गूलअम। व शर्त ई
अस्त कि दर हमी साल अज़ हुलयाय तबा मुकम्मल शवद ।
ज़्यादा अज़ दो हज़ार अवराक तकतीय कार तमाम शुदन्द ।
अलावा तसनीफ तसहीहे अवराके मसवदाते मतबा दरॉ शबरा
बराज व रोज़रा बशब वसर मीबरम । कमाल इहतियात
ज़रूर अस्त कि गुप्ताअन्द "antraula LUN" आहुगीराने
वेकार दिल-आजार कि नुक्ताचीनी ख्वाहन्द कर्द अज़ अव्वल
इस्लाहे कार वायद कर्द। पस चिगूना अज़ तरफ़ ऑ विरा-
दर कि उस्ताद व मुहसिन व मुरब्बी ई हेच मेयुर्ज़ बर दिले मोह-
व्बत मंज़िलम गुबारे कुदूरत व मलाल जॉ गीरद-वजुज़ लुत्फ़ो
इनायत चे करदह आयद कि मन ख़ुदा न ख्वास्ता ना खुश
शवम । बहर कैफ़ लायक अफू व उज़रम न काविले जजूर
चरा कि दिलम अज मुहब्बते शुमा मदाम मामृर अस्त । राह
अगर नजदीक व गर दूरस्त ।
दिल जुदा दीदा जुदा सूय तू परवाज कुनद ।
गरचे मन दर कफ़सम वाल व परम विनयार अस्त ।
पामर माहब फ़ारसी-गद्य और पद्य तो अच्छा लिखते ही थे-उर्दू-गद्य और पद्य लिखने मे भी वे सिद्ध-हस्त थे। नीचे उनकी एक उ कविता उद्धृत की जाती है, जिसे उन्होंने संयद अब्दुल्ला की एक कविता देखकर उसी के वज़न पर लिखी थी। सैयद अब्दुल्ला न इस कविता के विषय में कहा था कि इसमें