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विदेशी विद्वान


स्कूल में पढ़ने गया। उस समय उसकी अवस्था तेरह-चौदह वर्ष की थी। उसको यह भी मालूम न था कि हैम्पटन कितनी दूर है। वहाँ तक जाने के लिए उसके पास पैसा भी न था। घर से निकलने पर उसे मालूम हुआ कि हैम्पटन ५०० मील दूर है। मार्ग मे उसे बहुत कष्ट सहना पड़ा। जब वह किसी बड़े शहर में पहुँचता तब मजदूरी करके कुछ कमा लेता और आगे बढ़ता। दो-दो दिनों तक उसको भूखा रह जाना पड़ा। रात को सड़क पर पटरी के किनारे वह सो रहता था। इस प्रकार अनेक दुःख और क्लेश भोगने पर वह हैम्पटन पहुँचा। वहाँ मुख्य अध्यापिका ने सबसे पहले उसे एक कमरे का कूड़ा झाड़ डालने को कहा और इस बात की परीक्षा ली कि वह शारीरिक मिहनत से घृणा तो नहीं करता। वह इस प्रवेश- परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ और वहीं विद्याभ्यास करने लगा।

हैम्पटन स्कूल के अध्यक्ष (प्रिंसपल ) जनरल आर्मस्ट्राँग बड़े परोपकारी पुरुष थे। उनके प्रयत्न से यह स्कूल अमेरिका में बहुत प्रसिद्ध हो गया है। इन्हीं के पारा रहने के कारण चार वर्ष मे बुकर टी. वाशिंगटन ग्रेजुएट हो गया। इस स्कूल में वाशिगटन ने जिन बातों की शिक्षा पाई उनका सारांश यह है-

१-"पुस्तकों के द्वारा प्राप्त होनेवाली शिक्षा से वह शिक्षा अधिक उपयोगी और मूल्यवान है जो सत्-पुरुषों के समागम से मिलती है।"