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बुकर टी० वाशिंगटन


२-"शिक्षा का अन्तिम हेतु परोपकार ही है। मनुष्य की उन्नति केवल मानसिक शिक्षा से नहीं होती। शारीरिक श्रम की भी बहुत आवश्यकता है। श्रम से न डरने ही से आत्म- विश्वास और स्वाधीनता प्राप्त होती है। जो लोग दूसरों की उन्नति के लिए यत्न करते हैं-जो लोग दूसरों को सुखी करने में अपना समय व्यतीत करते हैं-वही सुखी और भाग्यवान हैं।"

३--"शिक्षा की सफलता के लिए ज्ञानेन्द्रिय, अन्तःकरण और कर्मेन्द्रिय ( Head, Heart and Hand ) की एकता होनी चाहिए। जिस शिक्षा मे श्रम के विषय मे घृणा उत्पन्न होती है उससे कोई लाभ नहीं होता।"

वाशिगटन स्कूल में पढ़ने और बोर्डिंग में रहने का खर्च न दे सकता था। इसलिए वह स्कूल मे द्वारपाल की नौकरी करके और छुट्टी के दिनों में शहर मे मज़दूरी या नौकरी करके द्रव्यार्जन करता था। इस प्रकार स्वयं श्रम करके अपने आत्मविश्वास के बल पर उसने हैम्पटन-स्कूल का विद्याभ्यास- क्रम पूरा किया। उसका नाम पदवी-दान के समय माननीय विद्यार्थियों (Honour-roll) मे दर्ज किया गया।

शिक्षक का काम

ग्रेजुएट होने के बाद वाशिंगटन अपने निवास स्थान, माल्डन, को सन् १८७६ मे लौट आया और वहाँ एक नीग्रो- स्कूल मे शिक्षक का काम करने लगा। स्कूल मे विद्यार्थियों की संख्या इतनी बढ़ गई कि उसको रात की पाठशाला खोलनी पड़ी। वहाँ